Indian Diaspora , continuity of mother tongue Hindi and South Asian/ Danish mixed marriage research in in Denmark

Activity: Talk or presentationLecture and oral contribution

Description

कोपनहेगन में हिन्दी सांस्कृतिक संगोष्ठी
९ अक्तूबर २०११ को कोपनहेगन में सांस्कृतिक कैफे ट्रंकबार हिन्दी संगोष्ठी से एक बार फिर गूँज उठा। इस कार्यकम की नींव तब पड़ गई थी जब मई २०११ में अभिव्यक्ति अनुभूति की संपादक पूर्णिमा वर्मन कोपनहेगन आयी थी और उनकी प्रेरणा से डेनमार्क में ऐसा पहला साहित्यिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था। पूर्णिमा वर्मन ने कोपनहेगन निवासी भारतीयों को प्रेरित किया था कि वे इसी तरह नियमित रूप से मिलते रहे और अपनी हिन्दी भाषा व भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देते रहें।
इस द्वितीय हिन्दी संगोष्ठी में डेनमार्क निवासी कई भारतीयों ने अपनी भागीदारी दी। सुखद संयोग से इस बार डा. विजया सती उपस्थित थीं। डा. सती दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्रोफेसर हैं और आजकल एल्ते विश्वविद्यालय बुदापैश्त हंगरी में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से नियुक्त हिन्दी की विजिटिंग प्रोफेसर है। डा. सती की उपस्थिति से कार्यक्रम और अधिक प्रभावी हो गया।

हम सभी जानते हैं कि हिन्दी एक बृहत देश हिन्दुस्तान की राजभाषा और एक विशाल जनसंख्या की मातृभाषा है। दुनिया में हिन्दी बोलने वालों की संख्या पहले से तीसरे स्थान पर निश्चित की जाती रही है। विश्व में किसी देश की भाषा की माँग उसकी राष्ट्री्रय शक्ति को चित्रित करती हैं। इसे देखते हुए पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी की स्थिति में तेजी से विकास हुआ है। विशेषकर विदेशों में रहने वाले भारतीय हिन्दी व भारतीय संस्कृति के विकास को लेकर काफी सक़िय होते जा रहे हैं। आज विदेशों से काफी अच्छा हिन्दी साहित्य लिखा जा रहा है। हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं। विश्व के अनेकों विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पाठ्यक्रम शुरू हो गए हैं। हिन्दी एक भाषा ही नहीं, हमारी संस्कृति व पराम्पराओं की अभिव्यक्ति भी है। सो देश-विदेश में चलते सामाजिक सांस्कृतिक व धार्मिक क्रियाकलाप एवम् गतिविधियाँ भी बढ़ी हैं।

कोपनहेगन में आयोजित संगोष्ठी का विषय था- कोपनहेगन निवासी भारतीय हिन्दी को कितना आवश्यक समझते हैं? अपने जीवन में कितना वे हिन्दी को अपनाते हैं? कितनी वे हिन्दी पत्रिकायें व पुस्तकें पढ़ते है? अपने बच्चों को हिन्दी सीखने के लिये वे कितना प्रेरित करते हैं। इस कार्यकम में कोपनहेगन में भारतीय सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। उन्होंने पकाश डाला कि अपनी संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यकमों द्वारा कैसे वे हिन्दी व भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित करते हैं। डा रश्मि सिंगला, सुखदेव सिंह सन्धू, डा. सुरेश बिहारी माथुर, सुनीता मंगा, डा सुभाष धर, गुरूचरण मिंगलानी, डा सुधीर शर्मा, स्वाति डंगवाल, सतीश सरीन आदि कई बुद्विजीवियों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। अन्त में विजयाजी ने एलते विश्वविद्यालय में विदेशियों को हिन्दी व भारतीय संस्कृति को पढ़ाने के अपने रोचक व जानकारीपूर्ण अनुभव सुनाए। कार्य का समापन गजल व कविता पाठ से हुआ।

-अर्चना पैन्यूली
Period9 Oct 2011
Event titleCopenhagen Hindi Seminar
Event typeSeminar
LocationCopenhagen, DenmarkShow on map